Aman Mishra

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रुद्र : भाग-१४

               लगभग नौ बजे रुद्र घर पहुँचा। उस वक्त सभी वहाँ बैठकर शरण्या और शिवान्या से बातें कर रहे थे। शरण्या ने हल्के पीले रंग की सादी सी कुर्ती पहनी हुई थी। शिवान्या ने लाल रंग का टॉप और नीचे काले रंग की पैंट पहनी हुई थी जो की उसके घुटनों से हल्की-सी नीचे तक थी। मगर रुद्र ने उसपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उसका ध्यान तो शरण्या के प्यारे से मुस्कुराते हुए चेहरे पर था।

             "आ गया तू। वहाँ क्या कर रहा है? यहाँ आ।" अंजना जी ने रुद्र को देखकर कहा।

             रुद्र आगे जाकर खड़ा हो गया। 

             "रुद्र जाकर फ्रेश हो जाओ। आज काफी थक गए होगे। जल्दी आओ फिर सब खाना खाएँगे।" पुरुषोत्तम जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

             "जी पापा।" कहते हुए रुद्र सीढ़ियाँ चढ़कर अपने कमरे में चला गया।

             कुछ देर बाद सभी खाने के टेबल पर बैठे हुए थे। हमेशा की तरह रुद्र के दादा जी अपनी कुर्सी पर थे। उनकी दाहिनी ओर रुद्र की दादी जी, बैठी थीं और उनके आगे की कुर्सियाँ खाली थीं। दादा जी के बायीं ओर पुरुषोत्तम जी और अंजना जी बैठे हुए थे। शरण्या और शिवान्या खाना परोसने में मुरली काका की मदद कर रही थीं। कुछ देर में रुद्र भी आ गया। उसने सफेद रंग का टी-शर्ट और गाढ़े नीले रंग का लोअर पहना हुआ था। रुद्र के आने तक शिवान्या अंजना जी की पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी थी। इसलिए रुद्र और शरण्या दूसरी तरफ वाली खाली कुर्सियों पर बैठ गए। मुरली काका रसोईघर में गए हुए थे। इसलिए शरण्या उठी और रुद्र को खाना परोसने लगी।

            "अरे अरे! आप क्यों तकलीफ ले रही हैं। मैं कर लूँगा।" रुद्र ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।

           "अरे इसमें कैसी तकलीफ? आप बैठिए, मैं परोस देती हूँ।" शरण्या ने रुद्र की थाली में रोटियाँ रखते हुए कहा।

           रुद्र ने इसपर कुछ कहा नहीं, बस थोड़ा शर्माते हुए सिर नीचे कर लिया। रुद्र को खाना परोसकर शरण्या अपनी जगह पर आकर बैठ गयी। 

            "आप को कितना टाइम हुआ पुलिस में भर्ती हुए?" शिवान्या ने अचानक से ये सवाल पूछा। सभी का ध्यान उसी की ओर चला गया।

            "अभी कुछ दिनों बाद एक महीना पूरा हो जाएगा।" रुद्र ने कहा।

            "बस एक महीना?" शिवान्या ने हैरानी से कहा।

            "जी हाँ।" रुद्र ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

            "वैसे बेटा, रविन्द्र कैसा है? मेरा मतलब अभी भी उतना ही मजाकिया है या बदला है?" पुरुषोत्तम जी ने शरण्या की ओर देखते हुए कहा।

           "पापा तो हमेशा से मजाकिया ही हैं। हमने तो आजतक कभी उन्हें किसी से तेज आवाज में बात करते हुए भी नहीं सुना।" शरण्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

          "वो बचपन से ही ऐसा ही है। मैंने भी कभी उसे गुस्से में देखा ही नहीं। बल्कि अगर कोई दुखी भी होता ना, तो बस रविन्द्र से बात करते ही वो भी मुस्कुराने लगता।" 

           इस बात पर सभी मुस्कुरा दिए।  कुछ देर बाद सभी का खाना हो गया। कुछ मिनट बातें करने के बाद सभी एक-दूसरे को शुभरात्रि कहकर अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। रुद्र भी अपने कमरे में गया और लगभग पंद्रह मिनट बाद ठंड से बचने के लिए, एक नीले रंग का जैकेट पहनकर बाहर टहलने के लिए चला गया। रुद्र को हमेशा से ही रात के समय बाहर टहलना पसंद था। खासकर की ठंड के मौसम में, जब वातावरण में हल्का-सा कोहरा छाया रहता था। रुद्र हमेशा की तरह थोड़ी देर फव्वारे के इर्दगिर्द घुमा और फिर बगीचे वाले हिस्से में गया। बगीचे में पैर रखते ही वह ठिठक गया। उसने देखा बगीचे की बेंच पर शरण्या बैठी हुई थी। उसने ठंड से बचने के लिए शाल ओढ़ी थी  पता नहीं क्यों, मगर रुद्र को घबराहट-सी होने लगी। ऐसा उसके साथ हर बार होता है, जब भी कोई लड़की उससे बात करती है या फिर उसे किसी कारण से किसी लड़की से बात करनी पड़ती है। 

            "अगर दिल इसी तरह धड़कता रहा तो आज छाती फट जाएगी और लोगों को श्रीराम के दर्शन हो जाएँगे। इससे पहले ये मुझे देख ले, यहाँ से निकल लेता हूँ।" रुद्र ने अपने आप से फुसफुसाते हुए कहा और धीरे-से उल्टे पाँव ही बगीचे से निकलने लगा।

             शरण्या अचानक ही उस ओर घूमी और अचानक से रुद्र को देख सहम गयी, लेकिन अगले ही पल वह संभल गयी। मगर रुद्र खुद को संभाल ना सका और लड़खड़ाते हुए उसने पास ही लगे एक पेड़ का सहारा ले लिया।

            "अरे! संभालिए।" शरण्या तुरंत दौड़ कर गयी और रुद्र को सहारा दिया। अब तो रुद्र की हालत और भी खराब हो गयी। वह तुरंत सीधा खड़ा हो गया और चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश की। 

            "क्या हुआ आपको?" शरण्या ने रुद्र की ओर गौर से देखते हुए कहा।

            "कुछ नहीं। व..... वो तो मुझे रात को थोड़ी देर खुली हवा में टहलने की आदत है।" रुद्र ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा।

            "मैं भी जब दिल्ली में थी तब हमारे घर के पास ही में एक पब्लिक गार्डन था, वहां टहलने जाती थी रात को। वी अभी माँ का फोन आया था, तो बात करने नीचे चली आयी। देखा तो मौसम काफी अच्छा था। इसलिए सोचा कुछ देर यहीं बैठ जाऊँ। आइए आप भी बैठिए।" कहते हुए शरण्या बेंच की ओर चल पड़ी।

            रुद्र थोड़ा शर्माते हुए बेंच के किनारे पर बैठ गया। इतनी ठंड में भी अब रुद्र पूरी तरह से पसीने में भीग चुका था। उसने अपनी जैकेट उतारकर अपने और शरण्या के बीच में रख दी। शरण्या रुद्र को ध्यान से देख रही थी। उसके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान थी।

            "आप इतने ज्यादा शर्मीले क्यों हैं?" शरण्या ने अचानक ही रुद्र से सवाल किया।

            रुद्र ने सकपका कर शरण्या की ओर देखा और कहा, "जी?"

            "मेरा मतलब आप हर लड़की से इसी तरह डरते हैं, या मुझमें आपको किसी भूतनी का साया दिखाई देता है?" शरण्या ने हँसते हुए कहा।

           "न.....नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। वो तो बस यूँ ही। मैं किसी से भी डरता-वरता नहीं हूँ।" रुद्र ने खुद को सहज दिखाने की कोशिश करते हुए कहा।

           "छोड़िए इन बातों को। मुझे आपसे कुछ और बात करनी थी?" शरण्या ने अपनी उसी प्यारी-सी मुस्कान के साथ कहा।

          "कौन-सी बात?" रुद्र ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा।

          "वो..... जब से पता चला कि आप पुलिस में हैं, तब से एक सवाल था मन में।" इस बार शरण्या थोड़ा हिचकिचाहट के साथ बोली।

          लेकिन अब, जब बातों में 'पुलिस' शब्द जुड़ गया तो रुद्र पूरी तरह सहज हो गया। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "जी पूछिए, क्या पूछना है आपको?"

           "वो...... माना कि हमें मिले अभी एक दिन भी नहीं हुआ है, लेकिन मैं ये तो समझ ही गयी हूँ कि आप कितने शांत और सीधे इंसान हैं। तो आपको बंदूकों से या फिर गुंडे-बदमाशों से डर नहीं लगता?" शरण्या ने कहा।

           रुद्र के अंदर अभी कुछ समय पहले जो हिम्मत आयी थी, वो एक ही पल में उड़ गई। एक तो पहली बार किसी लड़की से बात करने की कोशिश कर रहा था, अब उसके सामने अपनी तरफ कैसे करता। कैसे बताता की इसी शांत इंसान ने कुछ ही दिनों में तीन एनकाउंटर कर दिए हैं। रुद्र ने काफी मेहनत करके कहा, "जी..... अब हमारा तो काम ही यही है। इसमें डर कैसा। वैसे मेरे बारे में तो आपको जरूरी बातें पता चल ही गयी हैं। मुझे तो समय मिला ही नहीं कुछ जानने का।" रुद्र ने हिम्मत करके बात बदलने की कोशिश करते हुए कहा।

            "मैं एक सर्जन हूँ। मुझे बचपन से ही पापा की ही तरह एक डॉक्टर बनने का मन था। मैं दिल्ली में पं. दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में काम करती थी। अब यहाँ पर मैं दो दिन बाद, सिटी केअर हॉस्पिटल में जॉइन करने वाली हूँ।" शरण्या ने कहा।

            "वाह! ये तो बहुत अच्छी बात है। वैसे आपकी बहन क्या करती है? वो अभी पढ़ रही है क्या?" रुद्र ने कहा।

           "अरे, नहीं नहीं! वो मुझसे छोटी जरूर है, मगर इतनी भी नहीं। मैं २८ साल की हूँ, और वो २७ की। उसकी शरारतें देख कर नहीं लगता, मगर उसने वकालत की है।" शरण्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

           "ओह! मैं तो समझ रहा था कि वो अभी २२-२३ साल की हैं, और पढ़ाई कर रही हैं।" रुद्र ने भी हँसते हुए कहा।

           "चलिए अब हम भी जाकर सो जाते हैं। काफी देर हो गयी बातें करते हुए।" शरण्या ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा।

          "हाँ। चलिए चलते हैं।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।

          रुद्र और शरण्या बगीचे से बाहर निकल आए। अचानक ही रुद्र की नजर गेट पर पड़ी। उसे लगा जैसे उसने अभी-अभी वहाँ पर किसी को देखा, जो उसे देखते ही बाउंड्री वॉल की आड़ में छिप गया। 

           "क्या हुआ? चलिए।" शरण्या ने रुद्र से कहा।

           "हाँ। आइए।" रुद्र ने घर के दरवाजे की ओर बढ़ते हुए कहा।

            रुद्र ने दरवाजा बंद करते हुए एक बार और उस तरफ देखा, लेकिन इस बार वहाँ कोई नहीं था। रुद्र ने दरवाजा बंद कर दिया। उसके बाद रुद्र और शरण्या सीढ़ियों से ऊपर जाने लगे। शरण्या और शिवान्या का कमरा रुद्र के कमरे से थोड़ा आगे था। 

            "ज.....जी आप एक बार देख लीजिए आपके कमरे में पानी है या नहीं। नहीं होगा तो मैं जग भर कर ले आता हूँ।" रुद्र ने कहा।

            "पानी का जग तो मैं बाहर जाने के पहले ही भर कर गयी थी। वो शिवान्या को कभी भी रात में प्यास लग जाती है।" शरण्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

            "ठीक है। चलिए, शुभरात्रि।" रुद्र ने कहा।

            "शुभरात्रि।" कहते हुए शरण्या अपने कमरे में चली गई।

            रुद्र ने भी अपना दरवाजा बंद किया और जाकर लेट गया। काफी देर तक उसके चेहरे पर परेशानी के भाव दिखते रहे। वह यही सोच रहा था कि आखिर कैसे पकड़े उसे, जो उसका पीछा कर रहा है। अचानक रुद्र को एक तरकीब मिल गयी। उसके चेहरे से परेशानी के भाव पूरी तरह से गायब हो गए। 
             रुद्र ने अपनी घड़ी में टाइम देखा, रात के पौने बारह बज रहे थे, "इस वक्त अभय को फोन करना ठीक नहीं। वो भी आज लफी थक गया था। सुबह विराज और अभय से बात करता हूँ।" रुद्र ने खुद से कहा और लाइट बंद कर सोने की कोशिश करने लगा।


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             सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे। रुद्र और उसका पूरा परिवार नाश्ता करने के लिए बैठा हुआ था। आज रुद्र सबसे पहले ही आकर अपनी माँ के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया था। मगर आज भी वो ज्यादा सहज नहीं था, क्योंकि आज तो उसके बगल में शिवान्या बैठी हुई थी। कुछ देर बाद सभी का खाना खाकर हो गया। खाना खाकर रुद्र अपने कमरे में गया और अपनी यूनिफॉर्म पहनकर नीचे हॉल में आ गया। उसने देखा सोफे पर शिवान्या बैठी हुई थी। उसने पीली रंग की टी-शर्ट पहनी हुई थी और नीचे सफेद रंग की घुटनों तक की पैंट। 

            "हट यार! अब ये फिर से हजारों सवाल पूछेगी।" रुद्र ने सर पर हाथ मारते हुए कहा। रुद्र धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतरा और फिर बिना इधर-उधर देखे सीधा दरवाजे की ओर बढ़ने लगा।

           "अरे वाह! आप तो यूनिफॉर्म में जच रहे हैं।" शिवान्या ने अपनी उसी खनकती हुई आवाज में कहा।

           "जी धन्यवाद।" रुद्र ने कहा और इससे पहले की शिवान्या और कुछ पूछती, रुद्र ने अपना फोन निकाला और अपने कानों पर लगाते हुए कहा, "हाँ। हेलो, हाँ मैं बस थोड़ी देर में पहुँच रहा हूँ।"

           "चलिए शिवान्या जी, मैं चलता हूँ। शाम को मिलेंगे।" रुद्र ने कहा और शिवान्या के जवाब का इंतजार किए बिना बाहर निकल गया। बाहर जाते ही रुद्र ने अभय को फोन लगाया और कहा, "तुम दोनों तैयार हो ना?"

          "हाँ। हम दोनों तेरे घर से थोड़ा आगे ही मेन रोड पर ही गाड़ी में हैं।" दूसरी ओर से अभय ने कहा।

          "मैं अभी गाड़ी लेकर निकल रहा हूँ। मेरे पुलिस स्टेशन पहुँचने तक उसका पीछा करो। वहाँ दबोचेंगे उसे।" रुद्र ने आदेशात्मक लहजे में कहा।

          रुद्र अपनी गाड़ी में बैठा और गेट से बाहर निकलते वक्त एक नजर अपनी बायीं ओर डाली। वहाँ थोड़ी दूरी पर वही गाड़ी खड़ी थी, जिसे कल रुद्र ने अपना पीछा करते हुए देखा था। रुद्र वहाँ से सीधा चला गया। उसके तुरंत बाद वो गाड़ी भी शुरू हुई और रुद्र की गाड़ी के पीछे चल पड़ी। कुछ देर बाद रुद्र की गाड़ी मुख्य सड़क पर थी। रुद्र की गाड़ी से लगभग १००-१५० मीटर की दूरी से वो दूसरी गाड़ी पीछा कर रही थी। उस गाड़ी से थोड़ी ही दूरी पर अभय की गाड़ी भी थी। गाड़ी में अभय और विराज बैठे हुए थे। कुछ देर बाद रुद्र ने पुलिस स्टेशन के सामने अपनी गाड़ी रोकी। वो दूसरी गाड़ी वहाँ रुकने के बजाए पुलिस स्टेशन से आगे जा रही थी, कि अचानक एक गाड़ी तेजी से उस गाड़ी के सामने आकर रुकी। उस गाड़ी में से अभय और विराज अपनी बंदूकें हाथ में लेकर उतरे। अभय और विराज को देख वह गाड़ी वाला व्यक्ति थोड़ा डर गया और तुरंत गाड़ी का दरवाजा खोल वहाँ से पीछे की ओर भागने के लिए मुड़ा। लेकिन वहाँ रुद्र खड़ा था। अभय दौड़कर आया और उसकी गर्दन पकड़ ली।

           "चल बेटा, तुझसे कुछ बातें करनी हैं।" विराज ने बड़े ही प्यार से उस आदमी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

           "मुझे छोड़ दो। मैंने कुछ नहीं किया।" वो आदमी इस तरह बोला जैसे अभय उसे लूट रहा हो।

           "ए.....एक मिनट! जरा अपनी शक्ल दिखाना।" रुद्र ने उसका चेहरा अपनी ओर करते हुए कहा।

           "ओह!..... ये देखो। पहचाना इसे?" रुद्र ने अभय और विराज की ओर देखते हुए कहा।

           "अरे! ये तो......." अभय ने उसे गौर से देखते हुए कहा।

           "हाँ.....ये तो वही कॉन्ट्रैक्ट किलर है.....र....राणा।" विराज ने कुछ सोचते हुए कहा।

           "इसने अब तक अठारह खून किए हैं। दो बार तो कुछ लोगों ने इसे देखा भी था। मगर हर बार वहाँ से फरार हो जाता।" रुद्र ने कहा।

           "हाँ। और आज खुद ही अपना सिर ओखली में डाल दिया इसने।" अभय ने राणा के सिर पर एक चपत लगाते हुए कहा।

          "चलो। अंदर ले जाकर इससे पूछताछ करते हैं।" रुद्र ने कहा और अभय कि गाड़ी में बैठ गया। 

          अभय और विराज ने  राणा को घसीटते हुए गाड़ी के अंदर डाला। अभय राणा के एक तरफ बैठ गया और विराज दूसरी तरफ। रुद्र ने गाड़ी स्टार्ट की और पुलिस स्टेशन की दिशा में मोड़ दी।

           कुछ देर बाद राणा को लॉकअप में एक कुर्सी पर बिठाया गया था। अभय, रुद्र और विराज वहीं खड़े थे। राणा के गाल पर अभय का पंजा छपा हुआ था, जो कि अभय ने उसे तब मारा था जब वह लॉकअप में जाने से आनाकानी कर रहा था।

           "चल अब बता मेरा पीछा क्यों कर रहा था तू?" रुद्र ने बड़े ही आराम से कहा। 

           "न....नहीं नहीं....." राणा ने इतना ही कहा था कि अभय अपनी जगह से दो कदम आगे बढ़ा।

           "रुको! सब बता दूँगा। लेकिन पहले आप अपने हाथ को काबू में रखिए। कुछ सीखिए इनसे, कितना प्यार से बात करते हैं।" राणा ने रुद्र की ओर इशारा करते हुए कहा।

           "अबे, मैं था इसलिए सिर्फ थप्पड़ मारा। ये होते तो सीधा उड़ा देते तुझे। ये 'प्यार' से नहीं, 'गन' से बात करता है।" अभय ने रुद्र के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

           "अब तो बता दे। या मैं ही बात करूँ अब?" रुद्र ने अपनी गन निकालते हुए कहा।

           "बताता हूँ, बताता हूँ! मुझे आर्या ने भेजा था, ये पता करने के लिए की आप कब घर से निकलते हैं, कब घर जाते हैं, वगैरा वगैरा।" राणा ने एक ही साँस में पूरी बात कह डाली।

           उसकी बात सुनकर अभय और विराज चौंक गए। रुद्र के चेहरे पर तो कोई भाव नहीं थे, मगर उसने अपनी मुट्ठी कसकर बंद की हुई थी।









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            अब समय आ गया है, जब रुद्र आर्या के खिलाफ अपना पहला कदम बढ़ाएगा। क्या होगी रुद्र की चाल? जानिए अगले भाग में।

   
                                                   अमन मिश्रा
                                                         🙏


           



           

           

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1 Comments

BhaRti YaDav ✍️

30-Jul-2021 06:49 AM

Nice

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